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किशोर भारती संगठन के 50 साल पूरे होने के अवसर पर, भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (IISER) पुणे के सहयोग महत्वपूर्ण प्रतिबिंब सत्र (चिंतन शिविर) आयोजित किया गया है। इस कार्यक्रम में वर्तमान समय में शिक्षा में दुविधाओं और विरोधाभासों को हल करने और एक लोकतांत्रिक गणराज्य में इसकी भूमिका के संदर्भ में शिक्षा की पुनर्कल्पना पर चिंतन और विचार किया जाएगाI
भारत के संबंध में दो अवलोकनों को हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं, (यह कई अन्य देशों के संबंध में भी सच है)।
1. एक कृषक परिवार नहीं चाहता कि उनके बच्चे किसान बनें और ग्रामीण भारत में निवास करें।
2. एक शिक्षित ग्रामीण भारतीय गाँव का मूल निवासी बने रहने के बजाय शहरी बस्तियों में रहना चाहता है, भले ही इसके लिए झोपड़पट्टियों में रहना हो।
आदिवासी समुदायों में भी इसी तरह की प्रवृत्तियों को देखा जाता है, लेकिन उन्हें अक्सर पलायन करने के लिए मजबूर किया जाता है। हालाँकि इसके पीछे का कारण पूरी तरह से शिक्षा नहीं हैं बल्कि स्कूल और कॉलेज की शिक्षा के दौरान जिस तरह की महत्वकांक्षाओं को आत्मसात किया जाता हैं, वे भी जिम्मेदार हैं। निस्संदेह इसके पीछे सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक कारण भी मौजूद हैं। फिर भी, इस विचार-मंथन शिविर में, हम इस बात पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करेंगे कि पाठ्यक्रम और सीखने के वातावरण में किस तरह के सुधारों की आवश्यकता है, ताकि शिक्षा को एक बार फिर से इस प्रकार आकार दिया जा सके, जिससे इन मुद्दों को हल करने की दिशा में आगे बढ़ सके।
हाल की महामारी के दौरान, हमने विकास के अमानवीय मॉडल के संकेत के रूप में शहरों की अस्थायी बस्तियों से ग्रामीण घरों की ओर बड़े पैमाने पर पलायन देखा। यदि यह स्वतंत्र भारत के 75 वर्षों की यात्रा के सूचक है, तो कई चीजें गंभीर रूप से गलत हो गईं है। जो किसान और आदिवासी स्वतंत्र रूप से रह रहे थे, आश्रित हो गये हैं, हालांकि हमने गाँवो के सामंती ढांचे में आंशिक राहत देखी है। मुख्यधारा की स्कूलों और कॉलेजो की शिक्षा प्रणाली ने हमारी ग्रामीण और आदिवासी आबादी के जीवन को सफलतापूर्वक अलग-थलग और तबाह कर दिया है। देश की संपदा के प्रमुख उत्पादक होने के बावजूद उनके जीवन और जरूरतों को व्यवस्थित रूप से गिरावट की ओर, परिवर्तित और खंडित किया जाता रहा है। इस देश के सबसे ज्यादा निराश समुदाय गांवों और बस्तियों में रहते हैं।
किशोर भारती की स्थापना इस विश्वास के साथ की गई थी कि एक प्रभावी शिक्षा प्रणाली का आकलन केवल इस बात से किया जा सकता है कि वह ग्रामीण भारत में जीवन की गुणवत्ता को कितनी अच्छी तरह बढ़ाती है। पिछले वर्षों में केबी द्वारा चलाए गए कई कार्यक्रम इस जुझारूपन को दर्शाते हैं। यह एजेंडा अभी अधूरा है, लेकिन आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 1970 के दशक में था। किशोर भारती का हालिया प्रकाशन Paradoxes of rural development शिक्षा और ग्रामीण विकास की दुविधाओं और विरोधाभासों को उजागर करता है। यह हमारे संस्थापक न्यासियों (ट्रस्टी) में से एक स्वर्गीय सुरेश सूरतवाला द्वारा लिखा गया है और इसकी विस्तृत प्रस्तावना डॉ. अनिल सदगोपाल द्वारा लिखी गयी है (पुस्तक का पीडीएफ डाउनलोड करें)।
ग्रामीण भारत का मूल निवासी होने में आज का शिक्षित भारतीय अक्षम है। देश के औपचारिक और अनौपचारिक शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्थानों द्वारा बड़े पैमाने पर बनाई गई एक ऐसी मध्यस्थ दुनिया जो मुख्य रूप से कार्य पद्धतियों, साधनों और विचारों से घिरी हुई है जो हमें उत्पादक होने के स्थान पर उपभोक्ता बनने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। मौजूदा शिक्षण संस्थान (स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय) और राष्ट्रीय शिक्षा नीतियां इस समस्या को एक मुद्दे के रूप में नहीं देखती है और महत्वपूर्ण और रचनात्मक समाधानों की प्रक्रिया से पृथक भी मानती हैं।
अर्थपूर्ण शिक्षा के प्रदर्शक (असली तालीम): कोई भी शिक्षा तब तक सार्थक नहीं है जब तक कि वह गरीबी उन्मूलन, लोगों को रचनात्मक और खुशहाल बनाने, सामाजिक न्याय की स्थापना, सभी प्राणियों के सह-अस्तित्व के लिए एक स्वच्छ पर्यावरण और मानवाधिकारों के सम्मान के मूल्यों को विकसित करने के लिए एक स्पष्ट दिशा प्रदान नहीं कर सकती है। इसके साथ सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि शिक्षा किसी नागरिक को संविधान में प्रस्तावित सिद्धांतों और नियमों की प्रासंगिकता को नहीं समझा सकती है और स्वयं और दूसरों के कार्यों का आकलन करने में सक्षम नहीं हो सकती है, तो इसे पूर्ण नहीं माना जा सकता है। शिक्षाविदों के रूप में, यदि हम यह वादा नहीं कर सकते हैं, तो हम आत्मविश्वास के साथ “सभी के लिए शिक्षा” का दावा नहीं कर सकते।
चिंतन शिविर 25 और 26 मार्च 2023 को IISER पुणे परिसर में शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और कार्यकर्ताओं के साथ एक महत्वपूर्ण प्रतिबिंब में भाग लेने के लिए, ऊपर उल्लिखित मुद्दों को संबोधित करने और शिक्षा के एक ताज़ा, वैकल्पिक मॉडल पर पहुंचने के लिए होने जा रहा है।
स्वयंसेवकों द्वारा संचालित और एक दाता-समर्थित संगठन के रूप में, किशोर भारती के पास इस आयोजन को वित्तपोषित करने के लिए सीमित संसाधन हैं। एक मेजबान के रूप में, भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान परिषद (IISER) पुणे की आतिथ्य (संस्थान के गेस्ट हाउस में आवासीय व्यवस्था और मीटिंग रूम की उपलब्धता) की जिम्मेदारी होगी। इसलिए हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप स्वयं के यात्रा व्यय की जिम्मेदारी लेते हुए इस आयोजन में योगदान दें। कुछ विशिष्ट मामलों में यदि आप व्यक्तिगत रूप से या अपने संगठन के माध्यम से यात्रा व्यय का वहन नहीं कर पाते हैं, तो कृपया हमें लिखें। यदि आप हमें पहले से सूचित करते हैं तो हम सहयोग प्राप्त करने के तरीकों को खोज सकते हैं।
हम उम्मीद करते हैं कि आप दोनों दिन कार्यक्रम में भाग लेंगे। हम कार्यक्रम से पहले, कार्यक्रम के उद्देश्यों पर आपके विचार जानने के लिए तरीकों को भी खोज रहे है और तब भी, जब व्यक्तिगत रूप से इसमें भाग नहीं ले पा रहे हो। इस समीक्षात्मक चिन्तन के लिए आपका किसी भी तरह का योगदान हमारे लिए मूल्यवान है। हमारी शोध टीम इस मुद्दे पर पहले से प्रकाशित साहित्य को एकत्रित और दस्तावेजीकरण भी कर रही है, कृपया डिजिटल लाइब्रेरी के निर्माण की सुविधा के लिए हमें अपने स्वयं के टिप्पणियों सहित अपनी सिफारिशें भेजें। आपकी पुष्टि के बाद, हम आपको विमर्शों और चर्चाओं को आकार देने के लिए कुछ प्रश्न भेजेंगे, जो हमें प्रत्येक सत्र के लिए एजेंडा निर्धारित करने और एक उपयुक्त परिणाम के लिए कार्यवाही की संरचना को निर्धारित करने में मदद करेंगे।
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